रविवार, 19 मई 2019

श्री राम कथा

 Shree ram katha




 बहुत समय पहले सरयू नदी के किनारे परपरकोशला नामक राज्य था जिसकीराजधानी अयोध्या थी | दशरथ

अयोध्या के राजा थे जिनकी
तीन पत्निया कौशल्या ,
कैकयी और सुमित्रा थी|
राजा दशरथ कई समय तक निसंतान थे और अपने वंश
की वृद्धी के लिए बहुत
परेशान थे | इसके लिए उन्होंने ऋषि वशिष्ट
की सलाह पर पुत्र कमेशती
यज्ञ करवाया | फलस्वरूप उनके चार पुत्र हुए , कौशल्या से
पहले पुत्र राम , कैकयी से भरत और
सुमित्रा से लक्ष्मण-शत्रुघ्न का जन्म हुआ | उनके
सभी पुत्र दिव्य शक्ति से परिपूर्ण थे और
उनको राजकुमारों की तरह पाला गया और
उनको शाश्त्रो एवं युद्ध कला सिखाई गयी |
जब राम 16 वर्ष के हुए तब ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ के
दरबार में आये और उनके यज्ञ में विघ्न उत्तपन करने
वाले राक्षसों के आंतक के बारे में बताया और उनसे सहायता
माँगी | ऋषि विश्वामित्र ने इस कार्य के लिए
राम का चयन किया और उनके साथ लक्ष्मण
भी पुरी
कहानी में उनके साथ रहे | राम और
लक्ष्मण को आदेशानुसार दैत्यों का नाश करने के लिए
दैवीय हथियार दिए थे जिससे यज्ञ में बाधा
उत्प्प्न करने वाले दानवो का नाश कर दिया था |
दुसरी तरफ मिथिला प्रदेश के राजा जनक थे |
एक दिन उनको गहरे कुंड में एक बच्ची
मिली और खुशी से राजा
उसको भगवान का वरदान मानते हुए उसे अपने महल में ले
आये | राजा जनक ने उस बच्ची का नाम
सीता रखा | सीता
धीरे धीरे
बड़ी हुयी
और अद्वितीय सुंदरता से परिपूर्ण
थी | जब सीता विवाह योग्य
हुयी तो राजा जनक ने उसका स्वयम्वर रखने
का निश्चय रखा | राजा जनक ने स्वयम्वर में शिवधनुष को
उठाने वाले से सीता से विवाह करने
की शर्त रखी |ऋषि
विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ उस स्वयम्वर में आये
|
बहुत सारे राजाओ ने धनुष उठाने की कोशिश
की लेकिन धनुष को कोई नही
उठा पाया | केवल राम ही उस धनुष को उठा
सके और जब उन्होंने प्रत्यंचा चढाई तो धनुष टूट गया |
दसरथ ने शर्त के अनुसार राम का विवाह सीता
से करने क निश्चय किया और साथ ही
अपनी अन्य पुत्रियों का विवाह
भी राजा दशरथ के पुत्रो से करवाने का विचार
किया | इस तरह राम का विवाह सीता से ,
लक्ष्मण की उर्मिला से , भरत
की मांडवी से और शत्रुघ्न
की श्रुतकिर्ती से विवाह कर
दिया |मिथिला में विवाह का एक बहुत बड़ा आयोजन हुआ और
उसके बाद बारात अयोध्या लौट आयी |
Ramayan Ayodhya Kanda अयोध्याकाण्ड
राम और सीता के विवाह को 12 वर्ष हो गये
थे और अब वृद्ध दशरथ राम को सिंहासन पर बिठाना चाहते थे
| एक शाम राजा दशरथ की
पत्नी कैकयी ने एक चतुर
दासी मंथरा के बहकावे में आकर राजा दशरथ
से दो वचन मांगे जो राजा दशरथ ने कई बर्ष पहले
कैकयी द्वारा उनकी जान
बचाने के लिए देने का वादा किया था | कैकयी ने
अपने पहले वचन में राम को चौदह वर्ष का वनवास और दुसरे
वचन में अपन पुत्र भरत को राज सिंहासन पर बिठाने
की बात कही | इन वरदानो को
सुनते ही राजा दशरथ का दिल टूट गया और
कैकयी को अपने शब्दों पर दुबारा विचार कर
वचन वापस लेने को कहा | कैकयी
अपनी बात पर अटल रही
और राजा दशरथ ने राम को बुलाकर चौदह वर्ष के लिए वनवास
जाने को कहा|
राम ने अपने पिता का विरोध किये बिना अपने पिता का आदेश
स्वीकार कर लिया | जब सीता
और लक्ष्मण को इस सुचना का पता चला तो उन्होंने
भी राम के साथ जाने की
आग्रह किया | जब राम ने उनके साथ वन जाने से मना किया तो
सीता ने कहा “जिस वन में आप जायंगे वो
ही मेरा अयोध्या है और आपके बिना अयोध्या
मेरे लिए नर्क समान है ” | लक्ष्मण के भी
काफी आग्रह करने पर राम ने उन्हें
भी अपने साथ ले लिया | इस तरह राम ,
सीता और लक्ष्मण वन के लिए रवाना होने
को तैयार हो गये |उधर राम के वन जाने से
दुखी होकर राजा दशरथ ने अपने प्राण त्याग
दिए |
इस दौरान भरत , जो अपने मामा के यहा गये हुए थे , अयोध्या
की घटना सुनकर बहुत दुखी
हुए | भरत ने अपनी माता को सिंहासन पर
बैठने के लिए मना कर  दिया और राम को ढूंढते हुए वन में गये
और उनके साथ वन जाने का आग्रह किया | उन्होंने राम को
वापस लौटने को कहा लेकिन राम ने अपने पिता के वचन का
पालन करते हुए वापस नही लौटने का प्रण
किया | भरत ने भगवान राम की चरणपादुका को
साथ लेकर वापस लौट गया और उन्हें सिंहासन पर रख दिया
जब तक राम वापस नही लौट जाते |
Ramayan Aranya Kanda अरण्यकाण्ड
राम के वनवास को 13 वर्ष बीत गये थे और
वनवास का अंतिम वर्ष थे | राम सीता और
लक्ष्मण गोदावरी नदी के
किनारे पर जा रहे थे जहा उन्होंने कुटिया बनाकर रहने लग
गये थे | पंचवटी के जंगलो में एक दिन
सूर्पनखा नाम की राक्षश औरत
मिली जो लक्ष्मण को लुभाना
चाहती थी जिसमे वो असफल
रही तो उसने सीता को मारने
का प्रयास किया | लक्ष्मण ने उसको रोकते हुए उसके नाक
और कान काट दिए | जब इस बात की खबर
उसके राक्षस भाई खार को पता चली तो
उसने अपने राक्षश साथियो के साथ राम पर हमला कर दिया |
राम ने खार और उन सभी राक्षसो को
मिटटी में मिला दिया |
जब इस घटना की खबर रावण तक
पहुची तो उसने राक्षस
मरिची की मदद से
सीता का अपहरण करने की
योजना बनाई | मरिची ने स्वर्ण मृग बनकर
सीता का ध्यान अपनी ओर
आकर्षित किया | मृग की सुन्दरता पर मोहित
होकर सीता ने राम को उसे पकड़ने को भेज
दिय | भगवान राम , रावण की योजना से
अनभिज्ञ , माता सीता की
इच्छा को पूरा करने के लिए उस मृग के पीछे
जंगल तक गये और माता सीता
की रक्षा के लिए लक्ष्मण को छोडकर गये |
कुछ समय बाद माता सीता ने भगवान राम
की आवाज सूनी हो मदद के
लिए पुकार रहे थे और माता सीता ने लक्ष्मण
को भगवान राम की सहायता के लिए भेजा |
लक्ष्मण ने माता सीता को समझाया
की भगवान राम अजेय है और उन्हें कुछ
नही होगा,  इसलिए वो भ्राता राम
की आज्ञा का पालन करते हुए माता
सीता की रक्षा करना चाहता
था |
वातोंमाद में बात इतनी बढ़ गयी
कि सीता ने लक्ष्मण को वचन देकर भगवान
राम की सहायता करने का आदेश दिया | वो
उनकी आज्ञा तो मानना चाहता था लेकिन
उनको कुटिया में अकेला छोड़ना नही चाहता था
| लक्ष्मण  ने कुटिया के चारो ओर लक्ष्मण रेखा बनाई ताकि
इस रेखा के अंदर कोई प्रवेश ना कर सके और माता
सीता से इस रेखा से बाहर
नही निकलने का आग्रह किया | अब
लक्ष्मण भगवान राम की खोंज में निकल पड़े
| अंत में रास्ता साफ़ देखते हुए रावण ने साधू का वेश धारण कर
भीक्षा मांगने आया | माता
सीता उसकी चालो को ना
समझते हुए उसके भ्रमजाल में आकर लक्ष्मण रेखा से
बाहर कदम रख दिया और रावण माता सीता को
बलपूर्वक उठा कर ले गया |
जब रावण सीता को लेकर विमान में जा रहा था
तो एक जटायु नाम गिद्ध ने उसे देख लिया | जटायु ने माता
सीता की रक्षा करने का
प्रयास किया लेकिन प्राणघातक रूप से घायल हो गया | रावण
सीता को उड़ाकर लंका ले गये और
उसे राक्षसीयो की सुरक्षा में
डाल दिया | रावण ने अब सीता को विवाह करने
की मांग की लेकिन भगवान
राम के प्रति समर्पण होने के कारण रावण को मना कर दिया |
भगवान राम और लक्ष्मण ने माता सीता के
अपहरण के बारे में जटायु से सुना और तुरंत उन्हें बचाने के
लिए निकल पड़े | उनकी माता
सीता की खोज के दौरान
उनकी राक्षश कबंध और
साध्वी शबरी से मुलाकात
हुयी जिसने उन्हें सुग्रीव
और हनुमान तक पहुचाया |
Ramayan Kishkindha Kanda किष्किन्धाकाण्ड
किशकिंधा काण्ड वानरों के गढ़ पर आधारित है | भगवान राम
वहा पर अपने सबसे बड़े भक्त हनुमान से मिले |
महाबली हनुमान वानरों में सबसे महान नायक
और सुग्रीव के पक्षपाती थे
जिसको किष्किन्धा के सिंहासन से भगा दिया गया था | भगवान राम
की सुग्रीव से मित्रता हो
गयी और उन्होंने सुग्रीव को
उसके भाई बलि को मारने में मदद की
थी | इस प्रकार सुग्रीव को
फिर से किष्किन्धा का सिंहासन मिल गया और उसने बदल में
भगवान राम की माता सीता को
खोजने में मदद की |
हालांकि सुग्रीव अपने वादे को भूलकर अपने
शक्तियों का मजा लेने में मग्न हो गया | तब
बाली की
पत्नी तारा ने इस बात की
खबर लक्ष्मण को दी और लक्ष्मण ने इस
वानर गढ़ को तबाह करने की
धमकी दी |
सुग्रीव ने लक्ष्मण की बात
मानते हुए संसार के चारो कोनो में अपने खोज अभियान दल को
भेजा | उत्तर ,पश्चिम और पूर्व दल के खोजकर्ता वापस
लौट गये | दक्षिण खोज दल अंगद और हनुमान के नेतृत्व में
था जिनको जटायु के बड़े भाई सम्पति से ये सुचना
मिली की
सीता को लंका ले जाया गया |
"यह"
चीज
एक रात में पेट
की 13
कि
चर्बी
उड़ा
देगी!
बस सोते समय खाएँ...
बस
तीन
बूँद और पेट का मोटापा
चला गया ... सस्ता
घरेलू
तरीका!
त्वचा
गोर
करने का
रामबाण नु
लिख लें
Ramayan Sundara Kanda सुंदरकाण्ड
माता सीता के बारे में खबर मिलते
ही हनुमान ने विशाल रूप धारण करते हुए
लंका तक पहुचने वाले समुद्र को पार किया |हनुमान ने लंका में
माता सीता की खोज शुरू कर
दी | हनुमान को सीता अशोक
वाटिका में मिली जहा पर रावण और
उसकी राक्षेसी दासिया माता
सीता को विवाह के लिए बाध्य कर
रही थी | हनुमान माता
सीता तक पहुचे और उनको भगवान राम
की अंगूठी बताकर
अपनी पहचान बताई | हनुमान
जी ने माता सीता को भगवान
राम के पास ले जाने को कहा लेकिन माता सीता
ने ये कहकर मना कर दिया कि प्रभु राम के अलावा वो ओर
किसी ओर नर को स्पर्श करने
की अनुमति नहीं देंगे | माता
सीता ने कहा कि प्रभु राम उन्हें खुद लेने
आयेंगे और अपने अपमान का बदला लेंगे |
हनुमान जी ने अब अशोक वाटिका में पेड़ो को
तबाह करना शुरू कर दिया और उनको रावण के सैनिको ने
बंदी बना लिया | हनुमान जी
ने दरबार में माता सीता को छोड़ने के लिए रावण
के समक्ष दबंग भाषण दिया | रावण ने क्रोधित होकर हनुमान
जी की पूंछ में आग लगाने का
आदेश दिया | पूंछ में आग लगते ही हनुमान
जी वहा से उछलते हुए एक महल से दुसरे
महल , एक छत से दुसरी छत पर जाकर
पुरी लंकानगरी में आग लगा
दी और वापस विशाल रूप धारण कर किशकिन्धा
पहुच गये | जहा पर उन्होंने भगवान राम और लक्ष्मण को
सारी सुचना दी |
Ramayan Yuddha Kanda लंकाकाण्ड
युद्ध काण्ड [लंका काण्ड ] में भगवान राम
की सेना और रावण की सेना
के बीच के युद्ध को दर्शाया गया है | माता
सीता की सुचना हनुमान
जी से प्राप्त होते ही ,
भगवान राम और लक्ष्मण अपने साथियो के साथ
दक्षिणी समुद्र के किनारे तक पहुचे | वहा
पर उनकी मुलाकात रावण के
भेदी भाई विभीषन से
हुयी जिन्होंने रावण और लंका
की पुरी
जानकारी दी | नल और
नील नामक वानरो ने अपने साथियो के साथ
मिलकर समुद्र को पार करने के लिए रामसेतु का निर्माण किया
ताकि भगवान राम और उनकी सेना लंका तक
पहुच सके | लंका पहुचने के बाद भगवान राम और रावण के
बीच भीषण युद्ध हुआ
जिसमे भगवान राम ने रावण को मार दिया | इसके बाद भगवान राम
ने बिभीषन को लंका के सिहांसन पर बिठा दिया |
माता सीता से मिलने पर भगवान राम ने उन्हें
अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए अग्नि-
परीक्षा से गुजरने को कहा क्योंकि वो माता
सीता की पवित्रता के लिए
फ़ैली अपवाहो को गलत साबित करना चाहते थे
| जब माता सीता ने अग्नि में प्रवेश किया तो
उन्हें कोई नुकसान नही हुआ और वो अग्नि-
परीक्षा में सफल हो गयी |
अब भगवान राम , माता सीता और लक्ष्मण
वनवास की अवधि समाप्त कर अयोध्या लौट
जाते है और भगवान राम का राज्याभिषेक होता है | इस तरह
से राम राज्य की शुरुवात होती
है
Ramayan Uttara Kanda उत्तरकाण्ड
उत्तरकाण्ड महर्षि वाल्मीकि
की वास्तविक कहानी का बाद
का अंश माना जाता है | इसमें भगवान राम के राजा बनने के बाद
भगवान राम माता सीता के साथ सुखद
जीवन व्यतीत करते है |
कुछ समय बाद माता सीता
गर्भवती हो जाती है | जब
माता सीता की अग्नि-
परीक्षा की खबर अयोध्या
की जनता में फ़ैल जाती है तो
भगवान आम जनता के दबाव में आकर माता
सीता को अनिच्छा से वन भेज देते है | वन में
माता सीता को महर्षि वाल्मीकि
आश्रय देते है और वहा पर माता सीता दो
जुड़वाँ पुत्रो लव और कुश को जन्म देती है
| वो दोनों महर्षि वाल्मीकि के शिष्य बन जाते
है और उनको अपनी पहचान से अज्ञान
रखते है
वाल्मीकि ने रामायण की रचना
की और लव-कुश को इसका ज्ञान दिया | बाद
में भगवान राम अश्म्वेध यज्ञ का आयोजन करते है जिसमे
महर्षि वाल्मीकि लव और कुश के साथ जाते
है | लव और कुश भगवान राम और उनकी
जनता के समक्ष रामायण का गायन करते है | जब लव-कुश
को माता सीता को वनवास दिए जाने
की खबर सुनाई जाती है तो
भगवान राम बहुत दुखी होते है | माता
सीता को बुलाया जाता है और उनको
उनकी माँ धरती उनको लेने
के लिय पुकारती है और
धरती के फटने पर माता सीता
उसमे समा जाती है | भगवान राम को ज्ञात
होता है कि लव-कुश उनके पुत्र है | कुछ वर्षो बाद देवदूत
आकर भगवान राम को सुचना देते है कि उनके अवतार का
प्रयोजन खत्म हो चूका है और राम वापस स्वर्गलोक में चले
जाते है |
Unknown Facts of Ramyana रामायण के कुछ
अनसुने तथ्य
भगवान हनुमान 7
चिरंजीवी में से एक थे
और उनकी ये अमरता सतयुग के
प्रारम्भ तक रहेगी | कई लोगो का
मानना है कि हनुमान जी
अभी भी
जीवित है और हिमालय में निवास करते
है
ऋषि वशिष्ठ और ऋषि विश्वामित्र दोनों
ही भगवान राम के गुरु थे लेकिन एक
समय ऐसा भी आया जब दोनों एक दुसरे
से नफरत करने लग गये थे |
लक्ष्मण शेषनाग के अवतार थे जिन्होंने भगवान विष्णु
के आठवे अवतार में श्रीकृष्ण के बड़े
भाई बलराम बनकर उनका साथ दिया था | लक्ष्मण ,
शत्रुघ्न का जुड़वाँ भाई था और
उनकी माता का नाम सुमित्रा था |
लक्ष्मण अपने 14 वर्ष के वनवास में
कभी नही सोये थे
क्योंकि इसके पीछे
उनकी पत्नी उर्मिला
ने बड़ा बलिदान दिया था | जब भगवान राम वनवास में थे
तब वो चाहते थे कि लक्ष्मण दिन रात माता
सीता की सुरक्षा करे
| इसके लिए वो निंद्रा देवी के पास गये
और उसके हमेशा जागृत रहने की
प्रार्थना की | निद्रा
देवी ने कहा कि यदि लक्ष्मण के
स्थान पर ओर कोई सो जाए तो नींद का
संतुलन हो जाएगा | इसके लिएय लक्ष्मण ने
अपनी पत्नी उर्मिला
को उचित समझा | निद्रा देवी अयोध्या
जाकर उर्मिला से लक्ष्मण की
नींद लेने की बात
की और वो तुरंत इस बलिदान के लिए
राजी हो गयी | इस
तरह भगवान राम के राज्याभिषेक तक वो 14 वर्ष तक
सोती रही |
लक्ष्मण ने रावण के तीन पुत्रो को
मारा था जिसमे से मेघनाथ को वरदान मिला था कि उसको
केवल वही इन्सान मार सकता है
जिसने नींद पर विजय प्राप्त कर
ली हो फलस्वरूप लक्ष्मण ने उसे
मारा था और साथ ही रावण के दुसरे
पुत्रो प्रहस्त और अतिकेय था |
भगवान राम ने सरयू नदी में जल
समाधि लेकर इस धरती को छोड़ा था |
शिव धनुष को सीता बचपन में
आसानी से लेकर घुमा
करती थी इसलिए राजा
जंनक ने इसका ध्यान रखते हुए स्वयम्वर में धनुष
उठाने की शर्त रखी
थी |
सुग्रीव का भाई बहुत
शक्तिशाली वानर था जिसको वरदान मिला
था कि जो भी उसके सामने आएगा
उसकी आधी शक्ति
नष्ट हो जायेगी इसलिए
बाली को मारना बहुत कठिन था |
भगवान हनुमान ने पंचरुपी अवतार में
अहिरावन और महिरावण को मारा था |
भगवान परशुराम
चिरंजीवी [अमर ] थे
और वो भगवान विष्णु के तीन अवतारों
में नजर आये थे | पहले वो खुद परशुराम रूप में नजर
आये थे | दुसरे रामावतार में वो भगवान राम के विवाह का
हिस्सा थे | तीसरे कृष्णावतार में वो
भीष्म से लड़े और कर्ण को श्राप
दिय था | ऐसा लोगो का मानना है कि आज
भी वो जीवित है और
कल्कि अवतार में फिर नजर आयेंगे |
विभिषन ने रणभूमि में भगवान राम को बताया था कि
जितनी बार भी रावण
के सिर को काटेंगे वो फिर आ जाएगा | इसके लिए उनको
प्रस्वपना तीर मारकर पहले अमृत को
सुखाना होगा फिर वार करना होगा | इस तरह
विभीषन की मदद से
उन्होंने रावण को मारकर ध्रर्म का साथ दिया था फिर
भी उनको अपने भाई के भेद बताने के
कारण “घर का भेदी लंका ढाय ”
कहावत से जाना जाता है |
कुम्भकर्ण के दो पुत्र थे कुम्भ और निकुम्भ ; जो
दोनों रणभूमि में मारे गये थे |
भालुओ के सरदार जामवंत ने भगवान राम और
उसकी सेना को लंका पार करने के लिए
पुल बनाने में योगदान दिया था इसके लिए उन्होंने भगवान
राम से द्वंद्वयुद्ध करनी
की इच्छा जताई थी
और उनकी ये इच्छा महाभारत में
पुरी हुयी जब वो एक
खेल में कृष्ण भगवान से द्वंद्वयुद्ध लड़ते है |
जब लंका जाने के लिय नल और नील
पुल बना रहे थे तो एक गिलहरी
भी उनकी मदद के
लिए रेत को सेतु बनाने के लिए ला रही
थी | इसे देखकर दुसरे वानर हंसने
लगे तो निराश गिलहरी भगवान राम के
पास जाकर बैठ गयी | भगवान राम ने
प्यार से उसके उपर हाथ फेरा तब से ऐसा माना जाता है
गिलहरी के उपर राम
जी की अंगुलियों के
निशान है |
रावण की पत्नी
मन्दोदरी के पिता मायासुर एक लाख
वर्ष तक जीए थे जिन्होंने महाभारत
में पांड्वो की मायासभा का निर्माण किया
था |
रावण के पितामह पुलस्त्य सप्तऋषियों के साथ महान
ऋषियों में से एक थे | रावण के पिता विश्रवा
भी एक महान संत थे और रावण
की माँ कैकसी दैत्यों
की राजकुमारी
थी | इस तरह रावण आधा ब्राह्मण
और आधा राक्षस थे | रावण का पिता विश्रवा कुबेर का
पिता भी था इस तरह वो रावण का
सौतेला भाई था | रावण ने लंका कुबेर से लड़ाई कर
जीते थी और लंका
का राजा बन गया |
Ramayan रामायण के हर 1000वे श्लोक का
प्रथम अक्षर आपस एम् मिलकर
गायत्री मन्त्र का निर्माण करते है |
Ramayan रामायण युद्ध खत्म हो जाने पर हनुमान
जी वापस हिमालयो पर चले गये थे
और हिमालय की
दीवारों पर अपने नाखुनो से रामायण
की पुरी
कहानी अपने संस्करण में
लिखी थी | जब
महर्षि वाल्मीकि हनुमान
जी से मिलने गये तो उन्होंने हनुमान
जी की
दीवारों पर लिखी
Ramayanरामायण को देखा तो उनको हनुमान
जी का संस्करण उनके संस्करण से
बेहतर लगा और सोचने लगे कि अब उनके द्वारा रचित
रामायण Ramayan को कोई नही
पड़ेगा | जब इस बात की खबर हनुमान
जी को पता चली तो
हनुमान जी ने अपने संस्करण को
नष्ट कर दिया |

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